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परमात्मा का विस्मरण

 

 

एक नवविवाहिता को उसके पति ने एक नथनी प्रेम-स्वरूप भेंट की है !जिसे वह अपनी सहेलियों, सगे सम्बन्धियों एवं आस-पड़ोस की महिलाओं में दिखाती फिर रही है! बड़ी इतराती हुई कहती है - ये नथनी उन्होंने दी है , कितनी सुंदर है, ये कितने अच्छे है इत्यादि-२ ! इस पर कबीर साहब जी बड़ा ही सुंदर फरमाते है :
नथनी दी यार ने सिमरती बारंबार ;
नाक दी करतार ने उसको दिया बिसार !
नथनी देने वाले को तो बहुत याद किया जा रहा है पर जिसने नाक दी है उसे ही भुला दिया गया है !जरा सोचियेंगा साधकजनों गर नाक ही न होती तो नथनी कहा डाली जाती !परमात्मा का विस्मरण हमारे जीवन की सबसे बड़ी असफलता है और स्मरण सबसे बड़ी उपलब्धि ! सतत स्मरण हो उस देवाधिदेव का प्रयत्न कीजियेगा !