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परशुराम क्रोधी होने के साथ अत्यंत समझदार, कल्याणकारी और धर्मरक्षक थे

 
परशुराम क्रोधी होने के साथ अत्यंत समझदार, कल्याणकारी और धर्मरक्षक थे
भगवान परशुराम के पिता भृगुवंशी ऋषि जमदग्नि और माता राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका थीं. ऋषि जमदग्नि बहुत तपस्वी और ओजस्वी थे. ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पांच पुत्र रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्ववानस और परशुराम हुए. एक बार रेणुका स्नान के लिए नदी किनारे गईं. संयोग से वहीं पर राजा चित्ररथ भी स्नान करने आया था, राजा चित्ररथ सुंदर और आकर्षक था. राजा को देखकर रेणुका भी आसक्त हो गईं. किंतु ऋषि जमदग्नि ने अपने योगबल से अपनी पत्नी के इस आचरण को जान लिया. उन्होंने आवेशित होकर अपने पुत्रों को अपनी मां का सिर काटने का आदेश दिया. किंतु परशुराम को छोड़कर सभी पुत्रों ने मां के स्नेह के बंधकर वध करने से इंकार कर दिया, लेकिन परशुराम ने पिता के आदेश पर अपनी मां का सिर काटकर अलग कर दिया.
क्रोधित ऋषि जमदग्नि ने आज्ञा का पालन न करने पर परशुराम को छोड़कर सभी पुत्रों को चेतनाशून्य हो जाने का शाप दे दिया. वहीं परशुराम को खुश होकर वर मांगने को कहा. तब परशुराम ने पूर्ण बुद्धिमत्ता के साथ वर मांगा. जिसमें उन्होंने तीन वरदान मांगे – पहला, अपनी माता को फिर से जीवन देने और माता को मृत्यु की पूरी घटना याद न रहने का वर मांगा. दूसरा, अपने चारों चेतनाशून्य भाइयों की चेतना फिर से लौटाने का वरदान मांगा. तीसरा वरदान स्वयं के लिए मांगा जिसके अनुसार उनकी किसी भी शत्रु से या युद्ध में पराजय न हो और उनको लंबी आयु प्राप्त हो.