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वास्तुशास्त्र और शयनकक्ष में कैसे सोएं

 

शयन कक्ष विश्राम करने का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है वास्तुशास्त्र में शयन कक्ष का सम्यक विचार किया गया है यदि गृह स्वामी भवन निर्माण करते समय शयन कक्ष को वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुसार शयन कक्ष का निर्माण करवाए तो निद्रा के अतिरिक्त उसे अनेक प्रकार व्याधियों से छुटकारा अपने आप प्राप्त हो जाता है वास्तु शास्त्र में दक्षिण दिशा को यम की दिशा कहा गया है दक्षिन दिशा का स्वामी “यम” है यानि मृत्यु का देवता, इसलिए प्राचीन काल में श्मशान ग्राम/नगर के दक्षिण में स्थित होती थी उतर दिशा धन के देवता (कोषाध्यक्ष) कुबेर की है इसीलिए वास्तुशास्त्र में व्यक्ति के लिए दक्षिण दिशा में सिर और उतर दिशा में पाँव इस प्रकार के निर्देश हैं परन्तु ऐसा क्यों यहाँ यह जानना आवश्यक है हमारी पृथ्वी के दो ध्रुव हैं

१. उतरी ध्रुव

२. दक्षिणी ध्रुव

दोनों चुंबकीय सिद्धांतों पर कार्य करते हैं और हमारा शरीर भी इसी सिद्धांत पर इस तरह मनुष्य का सिर उतरी ध्रुव है और पैर दक्षिणी ध्रुव इसलिए यदि जब हम अपने सिर को उतर की और पैर दक्षिण की और कर के सोएगें तो चुंबकीय तरंगे विपरीत दिशा में कार्य करेंगी और हमे कभी भी अच्छी नींद नहीं आएगी और प्रातकाल तनावपूर्ण वातावरण में जागेंगे और शरीर में थकन होगी पश्चिम में सिर कर के सोने से मनुष्य को कई प्रकार रोगों से ग्रस्त होना पड़ता है, उतर की और सिर कर के सोने से मनुष्य को व्यर्थ के स्वप्न तथा नींद नहीं आती है इसलिए अपने शयन कक्ष में आप सदैव अपना सिर दक्षिण  की और या पूर्व की और कर के सोएं तो आपके जीवन में मंगल ही मंगल होगा