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अरिष्ट भंग योग

 

 

वर्षलग्नेश पंचवर्गी में सबसे अधिक बलवान होकर एक, चार, पांच, सात, नौवें या दसवें भाव में हों, तो अरिष्टनाशक योग होता है |
ब्रहस्पति केंद्र (१, ४, ७, १०) या त्रिकोण (५, ९) में शुभग्रहों से द्रष्ट हो व उस पर पापग्रहों की दृष्टि न हो, तो अरिष्टनिवारक योग होता है |
 
चतुर्थ भाव अपने स्वामी के साथ या शुभग्रह के साथ अथवा उससे दृष्ट हो, तो भी अनिष्टनाशक योग होकर धन, दुःख और सम्मान कि वृद्धि करता है |
 
सप्तमेश लग्न में ब्रहस्पति के साथ हो और क्रूरग्रह उसे न देखते हों, तो ऐसा योग अरिष्टनिवारक योग कहलाता है |
 
नवम घर का स्वामी तथा दुसरे घर का स्वामी बलवान होकर लग्न में हों तथा उन पर पापग्रहों की दृष्टि न हो, तो जातक राज्य में सम्मान प्राप्त करता है |
 
तीसरे, छठें, तथा ग्यारहवें स्थानों में पापग्रह एवं केन्द्र तथा त्रिकोण में शुभग्रह होते हैं, तो अरिष्टनिवारक योग बनता है |
 
लग्नेश पूर्णबली होकर केन्द्र, त्रिकोण या ११, १२वें स्थान में हो, तो जातक की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं |
 
उच्च राशि का स्वामी बलवान होकर वर्षेश हो तथा वह तीसरे व ग्यारहवें भाग में स्थित हो, तो अरिष्टनिवारक योग होता है |
 
 
सूर्य, ब्रहस्पति, तथा शुक्र परस्पर इत्थशाल योग करते हों, तो उस वर्ष जातक को नौकरी में प्रमोशन मिलता है |
 
शुक्र, बुध और चन्द्रमा अपनी मुधा में हों, तो जातक व्यापर से लाभ उठता है |
 
मंगल वर्षेश होकर मित्र की र्शी में हो और घर में पड़े ग्रह से मुत्थशिल योग करता है, तो उस वर्ष जातक को उच्च वाहन मिलता है |