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गणपति जी के आठ दिव्य चमत्कारिक मंदिर

 
गणपति जी के आठ दिव्य चमत्कारिक मंदिर


गणपति जी के ये आठ मंदिर उनके विभिन्न रूपों को प्रदर्शित करते है। गणपति जी के इन मंदिरों में मनुष्य जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने, उन्नति प्रदान करने और विद्या प्राप्ति के मार्ग प्रदर्शक रूपों का वर्णन किया गया हैं। वैसे तो ये आठों मंदिर एक दूसरे से बिलकुल अलग है, किन्तु इन सभी मंदिरों में एक दिव्य अलौकिक समानता भी देखने को मिलती है।

इन मंदिरों में गणपति जी और उनकी सूंड की स्थिति एक दूसरे से अलग-अलग है। उदाहरण के लिए, सभी मंदिरों में गणपति जी को इस प्रकार दर्शाया गया है कि उनकी सूंड उनके बाईं ओर गिरती है। परंतु सिद्धटेक का सिद्धिविनायक मंदिर एक ऐसा मंदिर हैं जहाँ उनकी सूंड दाईं ओर गिरती है।

मोरगाँव में गणपति जी का मयूरेश्वर मंदिर है। इस मंदिर में एक 50 फीट ऊंचा गुंबद है जिसके प्रत्येक कोने पर एक स्तंभ है, ऐसे ही चार स्तंभों पर मंदिर का गुम्बद खड़ा किया गया है। इसके पास ही एक पत्थर से बनाया गया तेल के दीयों का विशाल स्तंभ भी है जिसे दीपमाला कहा जाता है।

सिद्धिविनायक मंदिर सिद्धटेक में स्थित है। यहाँ प्रदक्षिणा करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि मंदिर एक पहाड़ी पर है और संपूर्ण प्रदक्षिणा लगभग 5 किमी की होती है। 

बल्लालेश्वर मंदिर पाली गाँव में स्थित है। आठ प्रमुख गणपति मंदिरों में से केवल यही एक ऐसा मंदिर है जिसका नाम उनके एक भक्त के नाम पर रखा गया है, जो एक ब्राह्मण के रूप में पैदा हुए थे।

गिरिजात्मक मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर गुफाओं में स्थित है। मंदिर में ऊपर तक पहुँचने के लिए लगभग 300 सीढ़ियाँ चढनी पड़ती हैं। नीचे से इस मंदिर का दृश्य बहुत सुंदर दिखता है। 

थेऊर का चिंतामणि मंदिर वह स्थान है जहाँ गणपति ने चिंतामणि का रूप लेकर एक ब्राह्मण की सहायता करके उसकी चिंताए दूर की थी। 

ओझर का विघ्नेश्वर मंदिर अपनी तरह का एक ऐसा मंदिर है जहाँ सुंदर गुंबद है और शिखर सोने से बना हुआ है।

महागणपति का मंदिर पूर्वमुखी है और एक विशाल प्रवेश द्वार से सज्जित है। जय और विजय दो द्वारपाल हैं जिनकी मूर्तियाँ द्वार पर देखी जा सकती हैं। यह मंदिर रांजणगाँव में स्थित है। 

आठंवा और अंतिम मंदिर वरद विनायक मंदिर महड में स्थित है। इस स्थान की मूर्ती एक झील के किनारे मिली थी और बाद में इसे एक मंदिर के अंदर रखा गया। वरद विनायक का आज जो मंदिर हम देखते हैं वास्तव में वह पेशवा शासकों द्वारा पुनर्निर्मित और पुनर्गठित किया गया है।