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लेडी मार्टिन के सुहाग की रक्षा करने अफगानिस्तान में प्रकटे शिवजी

 
लेडी मार्टिन के सुहाग की रक्षा करने अफगानिस्तान में प्रकटे शिवजी

साधू संग संसार में, दुर्लभ मनुष्य शरीर। 
सत्संग सवित तत्व है, त्रिविध ताप की पीर।। 

मानव-देह मिलना दुर्लभ है और मिल भी जाय तो आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक ये तीन ताप मनुष्य को तपाते रहते है। किंतु मनुष्य-देह में भी पवित्रता हो, सच्चाई हो, शुद्धता हो और साधु-संग मिल जाय तो ये त्रिविध ताप मिट जाते हैं। 

सन 1879 की बात है। भारत में ब्रिटिश शासन था, उन्हीं दिनों अंग्रेजों ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध का संचालन आगर मालवा ब्रिटिश छावनी के लेफ़्टिनेंट कर्नल मार्टिन को सौंपा गया था। कर्नल मार्टिन समय-समय पर युद्ध-क्षेत्र से अपनी पत्नी को कुशलता के समाचार भेजता रहता था। युद्ध लंबा चला और कुछ अब तो संदेश आने भी बंद हो गये। 

लेडी मार्टिन को चिंता सताने लगी कि 'कहीं कुछ अनर्थ न हो गया हो, अफगानी सैनिकों ने मेरे पति को मार न डाला हो। कदाचित पति युद्ध में शहीद हो गये तो मैं जीकर क्या करूँगी ? -यह सोचकर वह अनेक शंका-कुशंकाओं से घिरी रहती थी। चिन्तातुर बनी हुई वह एक दिन घोड़े पर बैठकर घूमने जा रही थी। मार्ग में किसी मंदिर से आती हुई शंख व मंत्र ध्वनि ने उसे आकर्षित किया और वह एक पेड़ से अपना घोड़ा बाँधकर मंदिर में गयी। 

बैजनाथ महादेव के इस मंदिर में शिवपूजन में निमग्न पंडितों से उसने पूछा :"आप लोग क्या कर रहे हैं ?" एक व्रद्ध ब्राह्मण ने कहा : " हम भगवान शिव का पूजन कर रहे हैं।" 

लेडी मार्टिन : 'शिवपूजन की क्या महत्ता है ?' 

ब्राह्मण :'बेटी ! भगवान शिव तो औढरदानी हैं, भोलेनाथ हैं। अपने भक्तों के संकट-निवारण करने में वे तनिक भी देर नहीं करते हैं। भक्त उनके दरबार में जो भी मनोकामना लेकर के आता है, उसे वे शीघ्र पूरी करते हैं, किंतु बेटी! तुम बहुत चिन्तित और उदास नजर आ रही हो! क्या बात है ?" 

लेडी मार्टिन :" मेरे पतिदेव युद्ध में गये हैं और विगत कई दिनों से उनका कोई समाचार नहीं आया है। वे युद्ध में फँस गये हैं या मारे गये है, कुछ पता नहीं चल रहा, मैं उनकी ओर से बहुत चिन्तित हूँ" इतना कहते हुए लेडी मार्टिन की आँखे नम हो गयीं। 

ब्राह्मण : "तुम चिन्ता मत करो, बेटी! शिवजी का पूजन करो, उनसे प्रार्थना करो, लघुरूद्री करवाओ। भगवान शिव तुम्हारे पति का रक्षण अवश्य करेंगे।"

फिर पंडितों की सलाह पर उसने वहाँ ग्यारह दिन का 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र से लघुरूद्री अनुष्ठान प्रारंभ किया तथा प्रतिदिन भगवान शिव से अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगी कि "हे भगवान शिव! हे बैजनाथ महादेव! यदि मेरे पति युद्ध से सकुशल लौट आये तो मैं आपका शिखरबंद मंदिर बनवाऊँगी।" लघुरूद्री की पूर्णाहुति के दिन भागता हुआ एक संदेशवाहक शिवमंदिर में आया और लेडी मार्टिन को एक लिफाफा दिया, उसने घबराते-घबराते वह लिफाफा खोला और पढ़ने लगी। 

पत्र में उसके पति ने लिखा था :"हम युद्ध में रत थे और तुम तक संदेश भी भेजते रहे लेकिन एक पठानी सेना ने घेर लिया। ब्रिटिश सेना कट मरती और मैं भी मर जाता। ऐसी विकट परिस्थिति में हम घिर गये थे कि प्राण बचाकर भागना भी अत्याधिक कठिन था। इतने में मैंने देखा कि युद्धभूमि में भारत के कोई एक योगी, जिनकी बड़ी लम्बी जटाएँ हैं, जिनके हाथ में तीन नोंकवाला एक हथियार (त्रिशूल) इतनी तीव्र गति से घुम रहा था कि पठान सैनिक उन्हें देखकर भागने लगे। 

उनकी कृपा से हमें घेरे से निकलकर पठानों पर वार करने का मौका मिल गया और हमारी हार की घड़ियाँ अचानक जीत में बदल गयीं। यह सब भारत के उन बाघाम्बरधारी एवं तीन नोंकवाला हथियार धारण किये हुए (त्रिशूलधारी) योगी के कारण ही सम्भव हुआ। उनके महातेजस्वी व्यक्तित्व के प्रभाव से देखते-ही-देखते अफगानिस्तान की पठानी सेना भाग खड़ी हुई और वे परम योगी मुझे हिम्मत देते हुए कहने लगे। घबराओं नहीं, मैं भगवान शिव हूँ तथा तुम्हारी पत्नी की पूजा से प्रसन्न होकर तुम्हारी रक्षा करने आया हूँ, उसके सुहाग की रक्षा करने आया हूँ"

पत्र पढ़ते हुए लेडी मार्टिन की आँखों से अविरत अश्रुधारा बहती जा रही थी, उसका हृदय अहोभाव से भर गया और वह भगवान शिव की प्रतिमा के सम्मुख सिर रखकर प्रार्थना करते-करते रो पड़ी। कुछ सप्ताह बाद उसका पति कर्नल मार्टिन आगर छावनी लौटा, पत्नी ने उसे सारी बातें सुनाते हुए कहा : "आपके संदेश के अभाव में मैं चिन्तित हो उठी थी लेकिन ब्राह्मणों की सलाह से शिवपूजा में लग गयी और आपकी रक्षा के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करने लगी। 

उन दुःखभंजक महादेव ने मेरी प्रार्थना सुनी और आपको सकुशल लौटा दिया।" अब तो पति-पत्नी दोनों ही नियमित रूप से बैजनाथ महादेव के मंदिर में पूजा-अर्चना करने लगे। अपनी पत्नी की इच्छा पर कर्नल मार्टिन मे सन 1883 में पंद्रह हजार रूपये देकर बैजनाथ महादेव मंदिर का जीर्णोंद्वार करवाया, जिसका शिलालेख आज भी आगर मालवा के इस मंदिर में लगा है। पूरे भारतभर में अंग्रेजों द्वार निर्मित यह एकमात्र हिन्दू मंदिर है। 

यूरोप जाने से पूर्व लेडी मार्टिन ने पड़ितों से कहा : "हम अपने घर में भी भगवान शिव का मंदिर बनायेंगे तथा इन दुःख-निवारक देव की आजीवन पूजा करते रहेंगे"