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अनंत चतुर्दशी

 

अनंत, भगवान विष्णु का एक नाम भी है तथा अनंत का अर्थ है जिसका अंत न हो, और चतुर्दशी का अर्थ है चौदस, अनंत चतुर्दशी, जिसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है, गणेश चतुर्थी के 10 दिन बाद आता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में पड़ता है। यह हिंदू पर्व गणेशोत्सव का भी अंतिम दिवस है जब भगवान् गणेश की मूर्तियों को पानी में विसर्जित किया जाता है।

अनंत चतुर्दशी पर्व भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। लोग उनका आशीर्वाद प्राप्त करने और खोई हुई संपत्ति को वापस पाने हेतु उनका स्मरण व् उनका पूजा- पाठ कराते हैं।

अनंत चतुर्दशी की कथा :

अनंत चतुर्दशी की कथा के अनुसार, बहुत समय पहले सुमंत नाम के एक ऋषि हुआ करते थे। उनकी पत्नी का नाम दीक्षा था। दोनों की एक सुंदर लड़की सुशीला थी। जब सुशीला बड़ी हुई, तो उसकी माँ दीक्षा की मृत्यु हो गई। जिसके, कुछ समय बाद सुशीला का विवाह उसके पिता ऋषि सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि से करा दिया। हालांकि विवाह के बाद भी सुशीला को काफी गरीबी और मजबूरी झेलनी पड़ी। 

एक दिन सुशीला ने देखा - कुछ महिलाएँ एक देवता की पूजा कर रही थीं। जब सुशीला ने इस बारे में पूछा, तो उसने अनंत व्रत के महत्व का पता चला। जब सुशीला ने यह सुना, तो उसने यह उपवास रखा और एक अनंत सूत्र को चौदह गांठों के साथ बांध लिया और ऋषि कौंडिन्य के पास वापस चली आई। धीरे-धीरे सुशीला और कौंडिन्य के दिन बदलने लगे। 

एक दिन जब ऋषि कौंडिन्य ने यह धागा देखा, तो उन्होंने इसके बारे में पूछा। सुशीला ने पूरी बात बताई। कौंडिन्य इससे अत्यंत क्रोधित हो गए और कहने लगे कि यह धागा जादू टोने के लिए लाया गया है। इसके बाद क्रोधित कौंडिन्य ने उस धागे को तोड़ दिया। जैसे ही यह हुआ, दोनों के दिन एक बार फिर से पहले जैसे होने लगे और संपत्ति नष्ट हो गई। जब कौंडिन्य ने अपनी पत्नी से इस बारे में चर्चा की, तो पत्नी ने कहा कि यह अनंत भगवान के अपमान के कारण हो रहा है।

कौंडिन्य को अपनी गलती का एहसास हुआ। इसके बाद 14 साल तक कौंडिन्य ने अनंत चतुर्दशी का व्रत किया। हरि इससे प्रसन्न हुए और धीरे-धीरे दोनों के दिन एक बार फिर बदलने लगे और वे सुख से रहने लगे।

अनंत चतुर्दशी के अनुष्ठान :

अनंत चतुर्दशी के शुभ अवसर पर महिलायें अपने परिवार की सुरक्षा हेतु व्रत रखती हैं, जबकि कुछ पुरुष भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाने के लिए लगातार चौदह वर्षों तक अनंत चतुर्थी व्रत (उपवास ) का पालन करते हैं। लोग इस दिन व्रत का पालन करते हैं और कुमकुम और हल्दी से रंगे हुए धागे को चौदह गांठों के साथ बाँधते हैं, जिसे ’अनंत सूत्र’ कहा जाता है, इस अनंत सूत्र को चौदह दिनों के बाद उतारा जाता है। 

इस अंनत सूत्र को महिलायें अपने बाएं हाथ पर बांधती हैं और पुरुष अपने दांए हाथ पर बांधते है।