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Kabir Jayanti

 

Kabir Jayanti


कबीर को सदियों हिंदी साहित्य से दूर रखा गया ताकि लोग यह वास्तविकता न जान लें कि कबीर के समय में और उससे पहले भी भारत में धर्म की एक समृद्ध परंपरा थी। जो हिंदू परंपरा से अलग थी और भारत के सनातन धर्म जैन और बौध धर्म हैं। कबीर धर्म, ईसाई धर्म तथा इस्लाम धर्म के मूल में बौध धर्म का मानवीय दृष्टिकोण रचा-बसा है। यह आधुनिक शोध से प्रमाणित हो चुका है। उसी धर्म की व्यापकता का ही प्रभाव है कि इस्लाम की पृष्ठभूमि के बावजूद कबीर भारत के मूलनिवासियों के हृदय में ठीक वैसे बस चुके हैं जैसे बुद्ध। 

कबीर जुलाहा कोरी परिवार से हैं। स्पष्ट है कि कबीर कोरी परिवार में जन्मे थे जो छुआछूत आधारित ग़रीबी और गुलामी से पीड़ित था और उससे निकलने के लिए उसने इस्लाम धर्म अपनाया था। 
 
अंधों की बस्ती में रोशनी बेचते कबीर वाकई अपने आने वाले समय की अमिट वाणी थे। कबीर का जन्म इतिहास के उन पलों की घटना है जब सत्य चूक गया था और लोगों को असत्य पर चलना आसान मालूम पड़ता था। अस्तित्व, अनास्तित्व से घिरा था। मृत प्राय मानव जाति एक नए अवतार की बाट जोह रही थी। ऐसे में कबीर की वाणी ने प्रस्फुटित होकर सदियों की पीड़ा को स्वर दे दिए। अपनी कथनी और करनी से मृत प्राय मानव जाति के लिए कबीर ने संजीवनी का कार्य किया।
 
इतिहास गवाह है, आदमी को ठोंक-पीट कर आदमी बनाने की घटना कबीर के काल में, कबीर के ही हाथों हुई। शायद तभी कबीर कवि मात्र ना होकर युगपुरुष कहलाए। 'मसि-कागद' छुए बगैर ही वह सब कह गए जो कृष्ण ने कहा, नानक ने कहा, जीसस ने कहा और मोहम्मद ने कहा। मजे की बात, अपने साक्ष्यों के प्रसार हेतु कबीर सारी उम्र किसी शास्त्र या पुराण के मोहताज नहीं रहे। न तो किसी शास्त्र विशेष पर उनका भरोसा रहा और ना ही जीवन भर स्वयं को किसी शास्त्र में बाँधा। 
 
कबीर का विशेष कार्य - निर्वाण :
 
निर्वाण शब्द का अर्थ है फूँक मार कर उड़ा देना। मोटे तौर पर इसका अर्थ है मन के स्वरूप को समझ कर उसे छोड़ देना और मन पर पड़े संस्कारों और उनसे बनते विचारों को माया जान कर उन्हें महत्व न देना। इन संस्कारों में एक कर्म फिलॉसफी आधारित पुनर्जन्म का सिद्धांत भी है। संतमत के अनुसार निर्वाण का मतलब कर्म फिलॉसफी आधारित पुनर्जन्म के विचार से पूरी तरह छुटकारा है। कबीर की आवागमन से निकलने की बात करना और यह कहना कि ‘साधो कर्ता करम से न्यारा’ इसी ओर संकेत करता है कि कर्म फिलॉसफी आधारित पुनर्जन्म का सिद्धांत एक नकली चीज़ है। 
 
तत्त्वज्ञान कहता है कि जो भी है इस जन्म में है और इसी क्षण में है। बुद्ध और कबीर ‘अब’ और ‘यहीं’ की बात करते हैं।  जन्मों की नहीं, वे चतुर ज्ञानी और विवेकी पुरुष हैं, सदाचारी हैं और सद्गुणों से पूर्ण हैं। कबीर के ज्ञान पर ध्यान दें, उनके जीवन संघर्ष पर ध्यान केंद्रित करें। उन्होंने सामाजिक, धार्मिक तथा मानसिक ग़ुलामी की ज़जीरों को कैसे काटा, यह देखें।