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शिर्डी वाले साईं बाबा

 
शिर्डी वाले साईं बाबा

दोनों एक समय  के जिगरी दोस्त थे । बहुत दिनों के बाद एक साथ और परिवार के साथ  मिले थे । वह भी महाराष्ट्र के मशहूर धार्मिक नगर शिर्डी में । दो दिनों का प्रोग्राम था । दोनों छुट्टी पर थे । एक एयर फ़ोर्स में कार्यरत शिव थे , तो दुसरे रेलवे के अधीन महादेव ।  नाम  अलग - अलग , पर अर्थ एक जैसे । यह भी एक इत्तेफाक था । पहले दिन नासिक दर्शन को  गए थे । थकावट में रात गुजरी । सुबह होते ही बाबा के दर्शन करने के बाद , शिर्डी  से प्रस्थान की व्यवस्था हो चुकी थी । दुसरे दिन वही हुआ , जो प्रोग्रमित था ।  दोनों दोस्त दोपहर के भोजन के बाद भक्ति निवास में लौट आयें । यही दो कमरे बुक हुए  थे । दोनों  दो बजे रेलवे स्टेशन के लिए रवाना होने वाले थे । शिव की ट्रेन नासिक से थी और महादेव की कोपर गाँव से । अतः शिव ने एक कार को भक्ति निवास में ही बुक कर लिया । कोपर गाँव जाने के लिए कोई साधन भक्ति निवास में उपलब्ध नहीं थे । साईं बाबा के मंदिर के सामने ही कोपर गाँव के लिए साधन मिलते है । दोनों के जुदा होने का वक्त आ गया था । भक्ति निवास में शिव अपने परिवार के साथ कार में जा बैठा । महादेव और उनके परिवार वालो ने विदाई हेतु अपने हाथ को हवा में लहराए । तभी महादेव के दिमाग में  एक तरकीब जगी , क्यों न हम सभी  इसी कार में साईं बाबा के मंदिर तक चल चले ? और दो मिनट  एक साथ रहेंगे । शिव ने भी ख़ुशी जाहिर की । महादेव भी परिवार के साथ उस कार में बैठ गया । कार पोर्टिको से बाहर सड़क की ओर चल दी ।

ओ ..ड्राईवर कार रोको ? किसी ने कार ड्राईवर को इशारा करते हुए कहा । ड्राईवर ने कार रोक दी । शायद वह ऑटो वाले थे । उसने ड्राईवर को  मराठी भाषा में कुछ हिदायत दी और न मानने की हालत में सौ रुपये जुरमाना देने को कहा । दस मिनट हो चुके थे । माजरा क्या है ?  जानने के लिए महादेव ने ड्राईवर से प्रश्न किया  । ये लोग दो परिवार को क्यों बैठाये हो -के मुद्दे पर प्रश्न खड़ा कर रहे है । एक ही परिवार को ले जाने के लिए कह रहे है । यह सून कर बड़ा ही ताज्जुब हुआ । ड्राईवर  और महादेव ने उन्हें समझने की लाख कोशिस की और उन्हें बताया गया कि एक परिवार मंदिर के पास उतर जाएगी । किन्तु उन लोगो के कान पर जू तक न रेंगी । उनकी बात न सुनी गयी , तो कार के चक्के की हवा निकाल देंगे । मामला गंभीर न हो जाए अतः महादेव  स्वयं परिवार सहित कार से निचे उतर गए और अफसोस के साथ दोस्त को अलबिदा किया । धर्म के स्थल पर यह घोर अन्याय है । महादेव मन ही मन बुद  बुदाये । ऑटो वाले ठीक नहीं कर रहे है । महादेव ने गुस्से के साथ पत्नी से कहा कि हम यहाँ से किसी ऑटो को किराये पर नहीं लेंगे और पैदल ही मंदिर तक जायेंगे । पहिये वाली सूट केस और बैग को सड़क पर खींचते हुए मंदिर की तरफ चल दिए , जहाँ से कोपरगाँव की   ऑटो / जीप  मिलती है । ऑटो वाले देखते रह गए । सहसा एक ऑटो आकर उनके समक्ष रूका , जिसे कोई बारह या पंद्रह वर्ष का लड़का चला  रहा था । लडके ने कहा - ऑटो में बैठिये मै मंदिर तक छोड़ देता हूँ । महादेव के मन में गुस्सा था । उसने सीधे इंकार कर दिया । किन्तु ऑटो वाला अपने   जिद्द पर अड़ा  रहा । अंततः महादेव ऑटो में बैठ गया । दो मिनट में मंदिर स्थल आ गया । महादेव ऑटो से उतरने के बाद भाडा देने हेतु अपने पर्स खोलने लगे  । पर ऑटो वाला बिना देर किये , बिना भाडा लिए ही , वहां से  फुर्र हो  गया । जबकि भक्ति निवास से मंदिर तक का ऑटो चार्ज बीस रुपये था । महादेव आश्चर्य चकित थे । भला जिस पैसे के लिए उन ऑटो वालो ने हमे कार से उतरने के लिए विवश कर दिया था , वही बिन भाडा कैसे जा सकते है ? उन्हें समझते देर न लगी । साईं बाबा ने अपने भक्तो को कभी भी उदास नहीं किया है । सभी की बिदाई ख़ुशी से करते है । महादेव ने मन ही मन साईं बाबा को प्रणाम किया ।