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Upcoming Festival-Gangaur 2022

 

Gangaur 2022 Date

April 4, 2022 - Monday

गणगौर पर्व भगवान शिव ओर पार्वती के आपसी रिश्तों व भगवान गणेश के जन्म से जु़ड़ी हुई पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है। 

जब पार्वती माता ने शिवजी से पुत्र की कामना की तो उन्होंने माता को 12 साल तक तपस्या करने को कहा। इस तपस्या के बाद उनके यहाँ पुत्र उत्पन्न हुआ। इसके बाद शुरु होती है गणेशजी के जन्म की कथा। इसी कथा से गणगौर पर्व की शुरुआत होती है। गणगौर पर्व के अंतर्गत ग्यारस को माताजी के मूठ धराते हैं। इस दौरान पंडित के यहाँ जाकर टोकरियों में गेहूँ के जवारे बोते हैं। परिवार में खुशी या मन्नत होने पर माता जी को अमावस के दिन बाड़ी से लाते हैं। तीन दिन तक रखकर रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन किया जाता है। 

नखराली गणगौर अमो नाच दिखला दे जाणे, 

नाचे वन में मोर म्हारा छैल भंवर चितचोर, 

जयपुरिया देखला दो, माने एक वारी हो। 

- यानी शर्मीली गणगौर हमे ऐसा नाच दिखा जैसे जंगल में मोर झूमकर नाचता है। मेरे पति जिन्होंने मेरा दिल चुरा लिया है, वे एक बार मुझे ले जाकर जयपुर दिखा दे। उक्त गीत गणगौर पर्व के दौरान महिलाओं द्वारा गाया जाता है। सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा मनाए जाने वाले इस पर्व को नई पीढ़ी की महिलाओं ने भी जस का तस अपना लिया है।  इसे लेकर महिलाओं में अपार उत्साह है। श्रृंगार के प्रतीक इस त्योहार में महिलाएं समूह बनाकर गीत गाती है, पूजा-अर्चना करती है और नृत्य करते हुए खुशियां मनाती हैं। साथ ही शिव-पार्वती की तरह अपने दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाने की कामना करती हैं। 

यह परपंरा राजाओं के जमाने से जारी है। सौभाग्यवती महिला अपने पति के लिए इसे मनाती है। पहले घर-घर में ज्वारे बोए जाते थे। किंतु अब सिर्फ मंदिर में ही बोए जाते हैं। वर्तमान में नए गीत नहीं लिखे जा रहे हैं। राजस्थान से आए गीत अभी भी चल रहे हैं। मूलतः यह पर्व राजस्थान और निमाड़ का है, जो सभी स्थानों पर मनाया जाता है। यह पर्व सुहागनें अपने सुहाग के लिए और कुंवारी लड़कियां शिव जी जैसे वर की कामना को लेकर मनाती है। घर में बरसों से गणगौर की परंपरा को देखकर नई पीढ़ी की बहू-बेटियां भी इस पर्व को अपनाने में पीछे नहीं है। 

सुहागने कलश लेकर मंदिर जाती है। 12 पत्तियों को पूजा के स्थान पर रखती है। इस दिन पान खाया जाता है, गुलाल लगाया जाता है और गन्ने का रस भी पीया जाता है। गणगौर पर्व पर महिलाएं उल्लासपूर्वक माताजी के गीत गाती हैं। महिलाओं में इस पर्व को लेकर उत्साह का माहौल रहता है। महिलाएं पूजन सामग्री एकत्रित कर आस्थापूर्वक पूजन करती है। महिलाएं इसका उद्यापन भी करती हैं। माहेश्वरी मंदिर में समाज की सभी महिलाएं एकत्रित होकर ईश्वर-पार्वती की पूजा-अर्चना करती है और फूलपाती निकालती हैं। 

इस दौरान गणगौर माता की शोभायात्रा भी निकाली जाती है। पति की लंबी उम्र एवं घर में सुख-शांति के लिए महिलाएं गणगौर पर्व मनाती है। शीतला सप्तमी से गणगौर पर्व आरंभ हो जाता है। नवरात्रि की तीज पर पूजा-अर्चना होती है। सदियों से चली आ रही परंपराओं में कोई बदलाव नहीं हुआ है। नई पीढ़ी ने उन्हें जस का तस अपना लिया है।