पौष पूर्णिमा के दिन को शाकंभरी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। देवी शाकम्भरी को दुर्गा का अवतार माना गया है।
मां के इस अवतार की एक कथा इस प्रकार है कि जब प्राचीन काल में पृथ्वी पर सूखा पड गया और सौ वर्ष तक वर्षा नही हुई तो चारो ओर सुखे के कारण हा-हाकार मच जाता है। पृथ्वी के सभी जीव पानी के बिना प्यास से मरने लगते हैं और सभी पेड़ पौधे वनस्पति सूख जाती है।
इस संकट के समय सभी ऋषि मुनि एक साथ मिलकर देवी भगवती की अराधना करते हैं। अपने भक्तों की पुकार सुन कर देवी ने पृथ्वी पर शाकुम्भरी नामक रूप में अवतार लिया व पृथ्वी को वर्षा के जल से सराबोर कर दिया। इससे पृथ्वी पर पुन: जीवन का संचार हुआ ओर चारों हरियाली छा गई। अत: देवी के इस अवतार को शाकम्भरी के रूप में पूजा जाता है और इस दिन को शाकंभरी पूर्णिमा या शाकंभरी जयंती के रूप में मनाया जाता है।