ॐ श्री वरुणाय नमः 
	दोहा 
	जय जय जल देवता, जय ज्योति स्वरूप |
	अमर उडेरो लाल जय, झुलेलाल अनूप ||
	 
	 
	चौपाई 
	 
	रतनलाल रतनाणी नंदन | जयति देवकी सुत जग वंदन ||
	दरियाशाह वरुण अवतारी | जय जय लाल साईं सुखकारी ||
	जय जय होय धर्म की भीरा | जिन्दा पीर हरे जन पीरा ||
	 
	संवत दस सौ सात मंझरा | चैत्र शुक्ल द्वितिया भगऊ वारा ||
	ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा | प्रभु अवतरे हरे जन कलेशा ||
	 
	सिन्धु वीर ठट्ठा राजधानी | मिरखशाह नऊप अति अभिमानी ||
	कपटी कुटिल क्रूर कूविचारी | यवन मलिन मन अत्याचारी ||
	 
	धर्मान्तरण करे सब केरा | दुखी हुए जन कष्ट घनेरा ||
	पिटवाया हाकिम ढिंढोरा | हो इस्लाम धर्म चाहुँओरा ||
	 
	सिन्धी प्रजा बहुत घबराई | इष्ट देव को टेर लगाई ||
	वरुण देव पूजे बहुंभाती | बिन जल अन्न गए दिन राती ||
	 
	सिन्धी तीर सब दिन चालीसा | घर घर ध्यान लगाये ईशा ||
	गरज उठा नद सिन्धु सहसा | चारो और उठा नव हरषा ||
	 
	वरुणदेव ने सुनी पुकारा | प्रकटे वरुण मीन असवारा ||
	दिव्य पुरुष जल ब्रह्मा स्वरुपा | कर पुष्तक नवरूप अनूपा ||
	 
	हर्षित हुए सकल नर नारी | वरुणदेव की महिमा न्यारी ||
	जय जय कार उठी चाहुँओरा |  गई रात आने को भौंरा || 
	 
	मिरखशाह नऊप अत्याचारी | नष्ट करूँगा शक्ति सारी ||
	 दूर अधर्म, हरण भू भारा | शीघ्र नसरपुर में अवतारा ||
	 
	रतनराय रातनाणी आँगन | खेलूँगा, आऊँगा शिशु बन ||
	रतनराय घर ख़ुशी आई | झुलेलाल अवतारे सब देय बधाई ||
	घर घर मंगल गीत सुहाए | झुलेलाल हरन दुःख आए ||
	मिरखशाह तक चर्चा आई | भेजा मंत्री क्रोध अधिकाई ||
	मंत्री ने जब बाल निहारा | धीरज गया हृदय का सारा ||
	 
	देखि मंत्री साईं की लीला | अधिक विचित्र विमोहन शीला ||
	बालक धीखा युवा सेनानी | देखा मंत्री बुद्धि चाकरानी ||
	 
	 
	योद्धा रूप दिखे भगवाना | मंत्री हुआ विगत अभिमाना ||
	झुलेलाल दिया आदेशा | जा तव नऊपति कहो संदेशा ||
	 
	मिरखशाह नऊप  तजे गुमाना | हिन्दू मुस्लिम एक समाना ||
	बंद करो नित्य अत्याचारा | त्यागो धर्मान्तरण विचारा || 
	 
	लेकिन मिरखशाह अभिमानी | वरुणदेव की बात न मानी ||
	एक दिवस हो अश्व सवारा | झुलेलाल गए दरबारा ||
	 
	मिरखशाह नऊप ने आज्ञा दी | झुलेलाल बनाओ बन्दी ||
	 
	किया स्वरुप वरुण का धारण | चारो और हुआ जल प्लावन ||
	दरबारी डूबे उतराये | नऊप के होश ठिकाने आये ||
	 
	नऊप तब पड़ा चरण में आई | जय जय धन्य जय साईं ||
	वापिस लिया नऊपति आदेशा | दूर दूर सब जन क्लेशा ||
	संवत दस सौ बीस मंझारी | भाद्र शुक्ल चौदस शुभकारी ||
	 
	भक्तो की हर आधी व्याधि | जल में ली जलदेव समाधि ||
	जो जन धरे आज भी ध्याना | उनका वरुण करे कल्याणा ||
	 
	 
	दोहा 
	चालीसा चालीस दिन पाठ करे जो कोय |
	पावे मनवांछित फल अरु जीवन सुखमय होय ||