महाकाली चालीसा
	 
	दोहा मात श्री महाकालिका ध्याऊँ शीश नवाय ।
	जान मोहि निज दास सब दीजै काज बनाय ॥
	 
	नमो महा कालिका भवानी। महिमा अमित न जाय बखानी॥
	तुम्हारो यश तिहुँ लोकन छायो। सुर नर मुनिन सबन गुण गायो॥
	परी गाढ़ देवन पर जब जब। कियो सहाय मात तुम तब तब॥
	महाकालिका घोर स्वरूपा। सोहत श्यामल बदन अनूपा॥
	जिभ्या लाल दन्त विकराला। तीन नेत्र गल मुण्डन माला॥
	चार भुज शिव शोभित आसन। खड्ग खप्पर कीन्हें सब धारण॥
	रहें योगिनी चौसठ संगा। दैत्यन के मद कीन्हा भंगा॥
	चण्ड मुण्ड को पटक पछारा। पल में रक्तबीज को मारा॥
	दियो सहजन दैत्यन को मारी। मच्यो मध्य रण हाहाकारी॥
	कीन्हो है फिर क्रोध अपारा। बढ़ी अगारी करत संहारा॥
	देख दशा सब सुर घबड़ाये। पास शम्भू के हैं फिर धाये॥
	विनय करी शंकर की जा के। हाल युद्ध का दियो बता के॥
	तब शिव दियो देह विस्तारी। गयो लेट आगे त्रिपुरारी॥
	ज्यों ही काली बढ़ी अंगारी। खड़ा पैर उर दियो निहारी॥
	देखा महादेव को जबही। जीभ काढ़ि लज्जित भई तबही॥
	भई शान्ति चहुँ आनन्द छायो। नभ से सुरन सुमन बरसायो॥
	जय जय जय ध्वनि भई आकाशा। सुर नर मुनि सब हुए हुलाशा॥
	दुष्टन के तुम मारन कारन। कीन्हा चार रूप निज धारण॥
	चण्डी दुर्गा काली माई। और महा काली कहलाई॥
	पूजत तुमहि सकल संसारा। करत सदा डर ध्यान तुम्हारा॥
	मैं शरणागत मात तिहारी। करौं आय अब मोहि सुखारी॥
	सुमिरौ महा कालिका माई। होउ सहाय मात तुम आई॥
	धरूँ ध्यान निश दिन तब माता। सकल दुःख मातु करहु निपाता॥
	आओ मात न देर लगाओ। मम शत्रुघ्न को पकड़ नशाओ॥
	सुनहु मात यह विनय हमारी। पूरण हो अभिलाषा सारी॥
	मात करहु तुम रक्षा आके। मम शत्रुघ्न को देव मिटा को॥
	निश वासर मैं तुम्हें मनाऊं। सदा तुम्हारे ही गुण गाउं॥
	दया दृष्टि अब मोपर कीजै। रहूँ सुखी ये ही वर दीजै॥
	नमो नमो निज काज सैवारनि। नमो नमो हे खलन विदारनि॥
	नमो नमो जन बाधा हरनी। नमो नमो दुष्टन मद छरनी॥
	नमो नमो जय काली महारानी। त्रिभुवन में नहिं तुम्हरी सानी॥
	भक्तन पे हो मात दयाला। काटहु आय सकल भव जाला॥
	मैं हूँ शरण तुम्हारी अम्बा। आवहू बेगि न करहु विलम्बा॥
	मुझ पर होके मात दयाला। सब विधि कीजै मोहि निहाला॥
	करे नित्य जो तुम्हरो पूजन। ताके काज होय सब पूरन॥
	निर्धन हो जो बहु धन पावै। दुश्मन हो सो मित्र हो जावै॥
	जिन घर हो भूत बैताला। भागि जाय घर से तत्काला॥
	रहे नही फिर दुःख लवलेशा। मिट जाय जो होय कलेशा॥
	जो कुछ इच्छा होवें मन में। संशय नहिं पूरन हो छण में॥
	औरहु फल संसारिक जेते। तेरी कृपा मिलैं सब तेते॥
	 
	दोहा महाकलिका की पढ़ै नित चालीसा जोय।
	मनवांछित फल पावहि गोविन्द जानौ सोय॥