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छोटी सी बात

 

आज स्वपनिल और संध्या ने तय
किया था कि आज तो वो डॉ.
से कहेंगे ही की अब दवाई
बदलो क्योंकि....
आज मनन को बुखार में तपते
चौथा दिन था ...पर बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले
रहा था..आखिर स्वप्निल और
संध्या से अब
सहा नहीं जा रहा था तो
उन्होंने डॉ. से
कहा कि क्या हम मनन को किसी अच्छे अस्पताल में
दाखिल करवा दे ? डॉ. ने
मना कर दिया कि ऐसी कोई
जरुरत नहीं है बुखार उतर
जाएगा....पर अब
वो दोनों माने नहीं और शहर के सबसे अच्छे अस्पताल में मनन
को दाखिल
करवा दिया गया..
उम्र बहुत काम थी मनन
की..सिर्फ सात साल
का ही तो था....पर उसे ठीक से होश नहीं आ रहा था. वो नींद
में कुछ बोले
जा रहा था..क्या बोल
रहा था ये किसी को समझ
नहीं आ रहा था..|
आखिर में डॉ. ने मनन के माता पिता को अपनी केबिन
में बुलाया...और पूछा कि "अब
आप लोग मुझे बताये कि जब उसे
बुखार आया है उसे पहले आपके घर
में कुछ हुआ था ? " स्वप्निल ने
जवाब दिया " ऐसा कुछ ख़ास नहीं हुआ था. बस हम दोनों के
बीच में छोटा सा झगडा हुआ
था....पर ये हम दोनों के बीच
बहुत आम सी बात है ....इस बार
भी कोई नयी बात नहीं हुई .."
डॉ.बीच में ही गुस्से से बोले " चलता रहता है से मतलब ? तुम
लोगो की अपने बच्चे को लेकर
कोई जवाबदारी है
की नहीं....तुम लोग समझते
क्यों नहीं..पहले ये
बतायो की झगडा क्या था ? स्वप्निल थोड़ा डर
सा गया..उसने कहा " उस दिन
मेरी बीवी के मायके वालो ने
पूजा कीर्तन रखा था और
हमारे बीच इसी बात को लेकर
झगडा हुआ कि उन लोगो ने मुझे इज्ज़त से आमंत्रित करने के लिये
फोन नहीं किया.."
और संध्याने कहा था कि " तुम
चाहो तो मनन से पूछ लो उसे
भी पता है कि मम्मी और
पापा दोनों का फोन आया था.....उन लोगो ने बहुत
इज्ज़त और सम्मान से हमहे
बुलाया है "
पर मैंने ही मनन को बहुत जोर से
डांट के पूछा था कि " सच
बताओ, कहीं मम्मी ने ही तो नहीं तुम्हे झूठ बोलने
को कहा है ...."और वो मेरी इस
बात और जोर की आवाज़ से डर
गया था और अपनी मम्मी के
पीछे छुप गया था..और मै
मेरी जिद्द के कारण पूजा में नहीं गया जिसकी वजहे से
संध्या रो रो के सो गई..सुबह उठ
ने के बाद हमने देखा तो मनन
को बहुत तेज़ बुखार था..|
इतना सुनते ही डॉ. ने जोर से
अपना हाथ अपने टेबल पे पटका और बोले " तुम लोगो में
अक्ल नाम की जैसी चीज है
की नहीं..खुद की बात
को सही और झूठी साबित करने
के लिये एक छोटे बच्चे
का सहारा लिया..शर्म आनी चाहिए तुम दोनों को..."
स्वप्निल और संध्या को खुद
की गलती समझते देर
नहीं लगी .. पर अब क्या ?
आज ८ दिन हो गए पर मनन
का बुखार नहीं उतर रहा था. और ना वो ठीक से होश में आ
रहा था..
आखिर में डॉ. ने कहा " अब
आपके पास एक ही रास्ता है,
आप अपनी पत्नी के मायके
वालो को बुलाओ औरअच्छे से बाते करो ताकि उन
बातो को मनन सुने ....इसी से
कुछ फर्क पड़ेगा मनन के मन
पर ..जिस से वो कुछ ठीक
हो सकता है ......खुद के गुस्से
का डर निकालो उसके मन से ...." बिना वक़्त बर्बाद
किये ...स्वप्निल अपने ससुराल
गया और अपने ससुर से
माफ़ी मांगी और डॉ. ने
जो जो बाते उस से कही थी सब
जा कर बताई..सास और ससुर तुरंत उसके साथ अस्पताल
पहुंचे .और जैसे कि डॉ. ने उन्हें
समझाया था वैसे ही उन्होंने
किया..और कुछ ही वक़्त में
इसका असर मनन की आँखों में
देखने को मिला ....वो अपने मम्मी पापा के प्यार
को करीब से देख कर कुछ खुश नज़र
आ रहा था ......आहिस्ता
आहिस्ता मनन का बुखार उतरने
लगा..और अगले तीन में
वो काफी ठीक भी हो गया ..पर ठीक होने के
बाद मनन ने अपनी मम्मी से
सबसे पहले ये पूछा " मम्मी ,
पापा गुस्से में तो नहीं है
ना ?"और संध्या ने हँसते हुए उसके
बालो को सहला दिया .... अब डॉ. ने उसे आज घर ले जाने
की अनुमति दे दी..स्वप्निल और
संध्या को डॉ. ने बुलाया और
कहा " तुम्हारे लिये जो बहुत
छोटी सी बात होती है
वो कभी कभी बच्चों के लिये बहुत बड़ी बात ...इस जीवन
का आधार बन जाती है ..उनके
मन में वो ऐसी कुंठा को जन्म
देती है कि उनके जीने
का आधार ही बदल
जाता है ..वो माता पिता के झगड़ो को सह नहीं सकते..... अब
मै ये ही कहूँगा कि आगे से उसके
सामने बहुत संभाल कर बात
करना"|
उस दिन से स्वप्निल और
संध्या ने अपने जीने का तरीका ही बदल लिया और
घर में हर पल ख़ुशी से
भरा वातावरण रखने लगे..
उन्होंने समझ
लिया था कि बच्चों को बहुत
ही प्रेम से और ध्यान से बड़ा करना ही उनका कर्तव्य है
|
स्वप्निल सोच रहा था कि हम
अपने अभिमान , मान , अपमान
के चक्कर में अपने
ही बच्चों को अपनी ही बातो से परेशान करते रहते है और
छोटी छोटी बातो पर हम
सबका कभी ध्यान
भी नहीं जाता.. बच्चों के मन
को पढ़ना बहुत
जरुरी है ...नहीं तो भगवान ने दिए हुए फूल को मुरझा जाने में
देर नहीं लगेगी ..और हमने
भगवान का अपमान
किया ऐसा ही कहलाएगा ......