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करवा चौथ व्रत पूजन विधि

 

सबसे पहले करवा चौथ व्रत की आवश्यक संपूर्ण पूजन सामग्री को एकत्र करें। उसके बाद निम्न प्रकार से करवाचौथ व्रत के नियमों का पालन करें।  

* करवा चौथ व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'
 
* इस रोज पूरे दिन निर्जला रहकर व्रत करें।
 
* पूजन कक्ष की दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
 
* आठ पूरियों की अठावरी बनाएं, हलवा बनाएं, पक्के पकवान बनाएं।
 
* पीली मिट्टी से माता गौरी की मूर्ति बनाएं और उनकी गोद में गणेश जी बनाकर बिठाएं।
 
* माँ गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौकी बनाकर आसन को उस पर रखें। फिर माता गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग की सामग्री से माँ गौरी का श्रृंगार करें।
 
* पूजा स्थल पर जल से भरा हुआ लोटा रखें।
 
* वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर कुछ दक्षिणा भी रखें।
 
* रोली से करवा पर स्वस्तिक का प्रतीक बनाएं।
 
* गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करते हुए अपने पति की दीर्घायु की कामना करें।
 
'नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥'
 
* करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
 
* कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासु माँ के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
 
* तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
 
* रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
 
* इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।