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कन्या-पूजन की महत्ता

 

नवरात्रमें कन्या-पूजन का बडा महत्व है। सच तो यह है कि छोटी बालिकाओं में देवी दुर्गा का रूप देखने के कारण श्रद्धालु उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। हमारे धर्मग्रन्थों में कन्या-पूजन को नवरात्र-व्रतका अनिवार्य अंग बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि दो से दस वर्ष तक की कन्या देवी के शक्ति स्वरूप की प्रतीक होती हैं।

हिंदु धर्म में दो वर्ष की कन्या को कुमारी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसके पूजन से दुख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है। चार वर्ष की कन्या कल्याणी के नाम से संबोधित की जाती है। कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कही जाती है। रोहिणी के पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है। छ:वर्ष की कन्या कालिका की अर्चना से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। सात वर्ष की कन्या चण्डिका के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है। आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी की पूजा से वाद-विवाद में विजय तथा लोकप्रियता प्राप्त होती है। नौ वर्ष की कन्या दुर्गा की अर्चना से शत्रु का संहार होता है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं। दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कही जाती है। सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होता है तथा लोक-परलोक में सब सुख प्राप्त होते हैं।

तंत्रशास्त्रके अनुसार, यदि संभव हो, तो साधक को नवरात्रमें पहले दिन एक कन्या, दूसरे दिन दो कन्या, तीसरे दिन तीन कन्या, चौथे दिन चार कन्या, पांचवेदिन पांच कन्या, छठे दिन छ:कन्या, सातवें दिन सात कन्या, आठवें दिन आठ कन्या तथा नवें दिन नौ कन्याओं का पूजन करना चाहिए। इससे मां दुर्गा प्रसन्न होकर अपने भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करती हैं। यदि भक्तों के लिए यह संभव न हो, तो वे नवरात्रकी अष्टमी अथवा नवमी के दिन अपनी साम‌र्थ्य के अनुसार, कन्या-पूजन करके भी देवी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। देवी के शक्तिपीठों में भी कन्याओं की नित्य पूजा होती है। शक्ति के आराधकोंके लिए कन्या ही साक्षात माता के समान होती हैं। देवी की स्तुति करते हुए कहा गया है-

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेणसंस्थिता।

नमस्तस्यैनमस्तस्यैनमस्तस्यैनमोनम:॥

जिस भारतवर्ष में कन्या को देवी के रूप में पूजा जाता है, वहां आज सर्वाधिक अपराध कन्याओं के प्रति ही हो रहे हैं। वास्तव में, जो समाज कन्याओं को संरक्षण, समुचित सम्मान और पुत्रों के बराबर स्थान नहीं दे सकता है, उसे कन्या-पूजन का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। जब तक हम कन्याओं को यथार्थ में महाशक्ति, यानी देवी का प्रसाद नहीं मानेंगे, तब तक कन्या-पूजन नितान्त ढोंग ही रहेगा। सच तो यह है कि शास्त्रों में कन्या-पूजन का विधान समाज में उसकी महत्ता को स्थापित करने के लिये ही बनाया गया है।

पूजन विधि

कन्या पूजन में तीन से लेकर नौ साल तक की कन्याओं का ही पूजन करना चाहिए इससे कम या ज्यादा उम्र वाली कन्याओं का पूजन वर्जित है। अपने सामथ्र्य के अनुसार नौ दिनों तक अथवा नवरात्रि के अंतिम दिन कन्याओं को भोजन के लिए आमंत्रित करें। कन्याओं को आसन पर एक पंक्ति में बैठाएं। ऊँ कुमार्यै नम: मंत्र से कन्याओं का पंचोपचार पूजन करें। इसके बाद उन्हें रुचि के अनुसार भोजन कराएं। भोजन में मीठा अवश्य हो, इस बात का ध्यान रखें। भोजन के बाद कन्याओं के पैर धुलाकर विधिवत कुंकुम से तिलक करें तथा दक्षिणा देकर हाथ में पुष्प लेकर यह प्रार्थना करें-

मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।

नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।।

जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि।

पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।

तब वह पुष्प कुमारी के चरणों में अर्पण कर उन्हें ससम्मान विदा करें।