शनि जयंती

 

इस दिन भगवान शनि देव की पूजा करने का विशेष महत्व है। भक्त भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए कई कार्य व् धार्मिक क्रियाकलाप करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि सौर मंडल के नौ प्रमुख ग्रहों में से एक है। शनि एक धीमी गति से चलने वाला ग्रह है और इसलिए इसे शनीचरा के नाम से जाना जाता है। 

ज्योतिष शास्त्र में शनि के जन्म और प्रभावों पर विस्तृत विवरण किया है। यह हवा का स्वामी है और पश्चिम दिशा को नियंत्रित करता है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग शनि जयंती पर श्रद्धा, समर्पण और विश्वास के साथ भगवान शनि देव की पूजा करते हैं उन्हें अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।

पौराणिक कथाओ के अनुसार, शनि, सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। संध्या की शादी सूर्यदेव से हुई थी जिसके साथ उनके तीन बच्चे मनु, यम और यमुना थे। संध्या लंबे समय तक सूर्य की चमक को सहन नहीं कर सकी और भगवान शिव की सेवा में अपनी छाया (परछाई) को पीछे छोड़कर चली गई। कुछ समय बाद छाया ने शनिदेव को जन्म दिया।

शनि जयंती के अवसर पर, भक्त भगवान शनि देव की आरधना करते हैं और उचित अनुष्ठानों के साथ में उपवास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि शनि जयंती पर किया गया दान, दक्षिणा, पूजा, पाठ आदि सभी दोषों से राहत देता है। 

इसके लिए व्रती को सुबह जल्दी उठना चाहिए, स्नान करना चाहिए, सभी नौ ग्रहों को नमस्कार करना चाहिए और लोहे से बनी भगवान शनि की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। मूर्ति को सरसों के तेल, तिलों से स्नान कराएं और भगवान् शनि का ध्यान करें | 

अनुष्ठान के अनुसार पूजा करने के पश्चात काले कपड़े, काले उड़द, काले जूते जैसे शनि से संबंधित लेख दान करें। पूजा में इस्तेमाल होने वाली चीजों के साथ तिल, लोहा, सरसों का तेल आदि का भी दान कर सकते है।

व्रत रखने वाले व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए और पूरे दिन शनि मंत्र का जाप करना चाहिए।

भगवान शनि देव की पूजा में तिल, काली मिर्च, मूंगफली का तेल, अचार, लौंग, तुलसी का पत्ता और काले नमक का प्रयोग करना चाहिए। भगवान हनुमान जी की पूजा द्वारा भी भगवान शनि प्रसन्न को प्रसन्न किया जा सकता हैं।